Asia की मिट्टी का वर्गीकरण: Asia में कितने प्रकार की मिट्टी पायी जाती है?

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Asia की मिट्टी का वर्गीकरण: एशिया की मिट्टी मानव की अनिवार्य संसाधनों में से एक है। तेजी से बढ़ती एशिया की जनसंख्या की उदरपूर्णे जरूरतों को पूर्ण करने के लिए पूरी तरीके से कृषि पर निर्भर है। मिट्टी और जल  मिलकर मानव की आधार पूर्ण जरुरत पूरी करने के आवशयक है

आज के ब्लॉग में हम पढ़ेंगे की Asia की मिट्टी कैसी है Asia की मिट्टी kitne prakaar ki hai, Asia me kon kon si mitti payi jaatai hai यह जाने के लिए पुरे लेख को पढ़े।

Asia me kitne prakar ki mitti payi jaati hai

Asia महाद्वीप में मिट्टी की महत्व क्यों है

कृषि उपज मूल रूप से मिट्टी पर निर्भर करती है।
• इस महाद्वीप प्रमुख व्यवसाय कृषि है।
• एशिया महादीप पर दो-तिहाई लोग प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
मिट्टी से विश्व की अनेक सभ्यताओ का विकास हुआ।
• किसी भी देश की उपजाऊ मिट्टी उसके विकास में मूल रूप से सहायता करती है।

मिट्टी की अर्थ ()Asia

मिट्टी उस प्रदार्थ के रूप में जाना जाता है जिसमे बहुत सारी वनस्पतियाँ, और जंतु स्थायी रूप से निवास करते हैं भूगोलवेत्ताओ के अनुसार मिट्टी से आशय चट्टानो पर बिछी धरातल की सबसे ऊपरी परत से है। जो असंघटित या ढीले पर्दार्थो जैसे टूटी चट्टानो के छोटे महीन कणों, खनिज, जैविक पदार्थो, बॅक्टीरिया आदि निर्मित है। जिसमें पेड़ पौधे आसानी से वृद्धि कर सकते है।
या मिट्टी के भू-परत असंघटित पदार्थो की परत जिसका निर्माण चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त चूर्ण तथा जैविक पदार्थो का विघटन से प्राप्त पदार्थो से होता है(Asia की मिट्टी का वर्गीकरण)

हूग बैनेट के अनुसार “मिट्टी भूतल पर मिलने वाले असंघटित प्रदार्थो की ऊपरी परत है जो चट्टानों और वनस्पति के असंख्य अंशो के योग से बनता है।”

Asia की मिट्टी का वर्गीकरण रंग तत्वों की उपस्थिति और रचना के आधार पर किया जाता है (Asia में कितने प्रकार की मिट्टी पायी जाती है?)

  1. मरुस्थलीय मिट्टी
  2. काली मिट्टी या चरनोजम
  3. भूरी मिट्टी या चेस्टनट
  4. लाल-पीली या पीली मिट्टी
  5. लाल या लेटेराइट मिट्टी
  6. पर्वतीये मिट्टी
  7. पेडजोल मिट्टी
  8. टुण्ड्रा मिट्टी

मरुस्थलीय मिट्टी –

यह मिट्टी बलुई तथा हल्के रंग की होती है
इस मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होती है। इसलिए यह मिट्टी कृषि के अयोग्य है।
इस मिट्टी में वनस्पति अंशों से शून्य होती है।
इस मिट्टी के कण मोटे और दूर-दूर होते है। इसलिए अधिक वाष्पीकरण के कारण यह मिट्टी बेकार हो जाती है
थोड़े से जल की प्राप्ति होने पर कँटीली झाड़ियाँ उग आती हैं,
इस तरह की मिट्टी का विस्तार अरब देशों के और है। जिसमें बेर, बबूल तथा खजूर मुख्य हैं।
यह मिट्टी अरब देश जैसे दक्षिणी-पश्चिमी एशिया के अरब मरुस्थल से लेकर भारत में थार मरुस्थल तक तथा मंगोलिया में गोबी के मरुस्थल आदि में पायी जाती है

चरनोजम या काली मिट्टी

चरनोजम या काली मिट्टी गहरे काले रंग की, चिपचिपी तथा वनस्पति अंशों से युक्त होती है
इस मिट्टी में चूने की प्रधानता होती है।
कपास की कृषि के लिए श्रेष्ठ मिट्टी होने के कारण इसे कपास की मिट्टी भी कहते हैं।

यह मिट्टी का विस्तृत रूप से एशिया महाद्वीप में तीन स्थलों पर पायी जाती है
भारत का उत्तरी-पश्चिमी दक्कन प्रदेश पश्चिमी साइबेरिया, तथा मंचूरिया के उत्तरी क्षेत्र में पायी जाती है
एशियाई रूस में इस मिट्टी का सबसे बड़ा क्षेत्र है। यहाँ पर इस मिट्टी को चर्नोजम कहते हैं।

चेस्टनट या भूरी मिट्टी

यह संसार की सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी है।
इस मिट्टी का रंग कत्थई लेकिन साइबेरिया प्रदेश में कहीं-कहीं काला भी होता है।
इस मिट्टी में पोटाश, अम्ल, नमक तथा वनस्पति का अंश अधिक होता है।
इस मिट्टी की अधिकता एशिया महाद्वीप में पश्चिमी एवं मध्य साइबेरिया के स्टैपी घास के प्रदेश तथा उत्तरी भारत के विशाल मैदान में पाई जाती है।
इस मिट्टी में कुछ गहराई पर ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है।
भारत के उत्तरी मैदान में कहीं-कहीं इसका रंग हल्का पीला भी होता है। इस मिट्टी पर सिंचाई करके गेहूँ, चना, जौ, गन्ना आदि की कृषि अधिक होती है। इस मिट्टी पर गेहूँ की कृषि अच्छी होती है। इसे “कॉप मिट्टी” भी कहा जाता है।

लाल-पीली मिट्टी या पीली

इस मिट्टी के कण दूर-दूर होने पर कारण कम उपजाऊ होती है। तथा इस मिट्टी में उपजाऊ तत्व नीचे चले जाते है।
भारत के दक्षिणी पठारी प्रदेश के मध्य भाग में भी इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी का रंग पीला होता है।
इस मिट्टी में पोटाश एवं वनस्पति के अंशों की कमी होती है।
यह मिट्टी उपजाऊ कम होने के कारण अधिक महत्त्व की नहीं है
दक्षिणी पठार की मिट्टी पतली तथा बजरीली होती है। यह मिट्टी एशिया के पूर्वी भागों में पूर्वी चीन, दक्षिणी कोरिया, दक्षिणी जापान आदि स्थानों पर मिलती है।

लाल या लेटेराइटमिट्टी लाल मिट्टी

इसमें छोटे-छोटे लोहे के कण मिलते उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले क्षेत्रों में इस मिट्टी के कण बड़े होते हैं तथा इसे लेटेराइट मिट्टी हैं।
यह बलुई मिट्टी है जिसमें बालू के मोटे कण होते हैं अतः कृषि के लिए अधिक वर्षा और खाद की आवश्यकता होती है।
इसमें लोह तत्व कण पाए जाते है
यह मिट्टी लाल रंग की होती है।
वहाँ सिंचाई करके रागी, ज्वार, बाजरा आदि की कृषि की जाती है।
दक्षिणी एशिया के एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई है।
यह हिन्देशिया,दक्षिणी भारत, श्रीलंका, थाइलैण्ड, हिन्दचीन, मलेशिया तथा फिलीप द्वीप पर पाई जाती है।

पर्वतीय मिट्टी

एशिया के मध्यवर्ती उच्च पर्वतीय प्रदेश में यह मिट्टी मिल इसे उच्च प्रदेशीय मिट्टी भी कहते हैं।
इस मिट्टी का रंग गहरा तथा मिट्टी चाय की कृषि के लिए सर्वोत्तम है।
हिमालय के असम क्षेत्र में इस मिट्टी को चाय के नाम से पुकारते हैं।
इस मिट्टी में बालू के कण पास -पास होते हैं।
पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण इस मिट्टी का आर्थिक महत्त्व अधिक इस मिट्टी में चाय, चावल तथा आलू की कृषि अधिक होती है।
यह मिट्टी हिमालय, तिब्बत तथा सीक्यांग पर्वतीय क्षेत्र में पायी जाती है।

पेडजोल मिट्टी

इस प्रकार की मिट्टी में लोहा, चूना, पोटाश तथा खनिज अंश अधिक पाए जाते हैं।
इनमें तेजाब के अंश की कमी होती है।
अम्ल तत्व कम पाए जाते है।
इस मिट्टी का रंग राख जैसी होता है।
यह अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी है।
यह मिट्टी गेहूँ एवं जौ की कृषि के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसे राख मृदा के नाम से भी जाना जाता है।
वन प्रदेशों में मिलने के कारण इसमें वनस्पति के अंश अधिक मिलते हैं।
एशिया महाद्वीप में साइबेरिया के नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वन पत्ती वाले प्रदेशों में पेडजोल मिट्टी पाई जाती है
यह मिट्टी एशियाई रूस के पश्चिमी भाग से लेकर उत्तरी चीन, उत्तरी कोरिया तथा उत्तरी जापान में फैली हुई है।

टुण्ड्रा मिट्टी

यह मिट्टी पूर्व में बेरिंग सागर से लेकर पश्चिम में यूराल पर्वत तक पाई जाती है।
यह मिट्टी एशिया महाद्वीप के उत्तरी भाग में टुण्ड्रा प्रदेशों में पाई जाती है।
आर्थिक दृष्टिकोण से इस मिट्टी का महत्त्व अधिक नहीं है क्योंकि जहाँ इस प्रकार की मिट्टी मिलती है वहाँ की जलवायु कृषि के अयोग्य है।
इस मिट्टी में लोहा तथा रेत की मात्रा अधिक होती है।
अतः मिट्टी अत्यन्त शीत के कारण कठोर हो जाती है एवं जमी रहती है। इस मिट्टी की ऊपरी तह का रंग हल्का कत्थई होता है।
इस मिट्टी में वाष्पीकरण कम होने के कारण दलदल भी बन जाते हैं।
अनेक स्थलों पर इस मिट्टी की ऊपरी तह चिकनी हो जाती है, जिसमें ग्रीष्मकाल में पपड़ी पड़ जाती है।

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