Tatwamasi:- तत्त्वमसि (तत् त्वम् असि) भारत के शास्त्रों व उपनिषदों में वर्णित महावाक्यों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, वह तुम ही हो। वह दूर नहीं है, बहुत पास है, पास से भी ज्यादा पास है। तेरा होना ही वही है।
सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय ‘ब्रह्म’ ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।
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वेदों के चार महावाक्य-
तत्त्वमसि | “वह ब्रह्म तुम्हीं हो” | छान्दोग्य उपनिषद् 6.8.7- सामवेद |
अहं ब्रह्मास्मीति | “मैं ब्रह्म हूॅे” | बृहदारण्यक उपनिषद् 1.4.10 –यजुर्वेद |
अयम् आत्मा ब्रह्म | “यह आत्मा ब्रह्म है” | माण्डूक्य उपनिषद् 1/2 – अथर्ववेद |
प्रज्ञानं ब्रह्म | “यह प्रज्ञानं ही ब्रह्म है” | ऐतरेय उपनिषद् 1.3.3 – ऋग्वेद |